Sunday, November 21, 2010

महफूज अली ब्लोग जगत का हीरो जा जीरो ?

खुशदीप सहगल की पोस्ट देखने के बाद बहुत निराशा हुयी कि वरिष्ठ ब्लोगर भी इस तरह की ओछी पोस्ट लिखते हैं. कई दिन से यह प्रश्न में था कि ब्लोग जगत का नायक यानी हीरो कौन है ? क्या अब ऐसे दिन आ गए हैं कि महफूज जैसे लोग ब्लोग जगत के हीरो कहलायेंगे ?
हीरो होने का क्या पैमाना होना चाहिए ?
क्या महिलाओं के ब्लोगों पर जाकर उनसे प्रेम पींगें बढ़ाना हीरोगिरी है ?
क्या महिला ब्लोगरों के ब्लोगों पर जाकर खुलेआम I love you लिखना हीरोगिरी है ?
क्या अपने ब्लोग पर महिलाओं के बारे में यह लिखना हीरोगिरी है कि अब तक 300 महिलाओं को पटा चुके हैं ?
क्या जहां जाओ वहीं किसी न किसी महिला पर डोरे दाल लेना हीरोगिरी है ?
महफूज खुद लिखता है अपनी पोस्ट में किसी मोनिका के बारे में.
दूसरा इंसिडेंट हुआ यह कि पिछली पोस्ट लिखी थी एक्सिस बैंक के बारे में... तो एक्सिस बैंक में मोनिका नाम कि लड़की है... मुझे उसे अपनी कुछ डिटेल्ज़ मेल करनी थी... वो मैंने उसे कर दी... लेकिन हुआ क्या कि मैंने अपने जीमेल में सिग्नेचर में अपने ब्लॉग का लिंक दिया हुआ है... वो लिंक भी उसके पास चला गया...  मैं एक्सिस बैंक  मोनिका के चैंबर में पहुंचा दूसरे दिन ... तो मोनिका ने बहुत प्यार से मेरी धोयी ... वो भी बिना पानी के... उसने मेरा पहले बैंक का काम किया... फिर मुझसे मेरी हौबीज़ के बारे में बात करने लगी... मैंने बताया कि रीडिंग, राईटिंग और ट्रैवलिंग मेरी हौबी है... फिर उसने मुझसे लिट्रेचर पर भी बहुत सारी बातें की... डैन ब्राउन से लेकर ... प्रेमचंद, प्रेमचंद से लेकर मिल्टन जॉन, मिल्टन जॉन से गोर्की.. और भी बहुत सारी बातें... उसने सब्जेक्ट्स पर भी बातें की.. मैं बहुत इम्प्रेस्ड हुआ... और जब चलने को हुआ तो कहती है कि आपका ब्लॉग पढ़ा था... मेरा हाल ऐसा हुआ कि एयर-कंडीशंड कमरे में भी कान के पीछे से शर्म के मारे पसीना चू गया...   मैं वापस बैठ गया... और आधे घंटे तक उसे दुनिया भर के एक्स्प्लैनैशन देता रहा ... मेरे यह समझ में आ गया.. कि कभी भी किसी लड़की को अंडर-एसटीमेट नहीं करना चाहिए...  साला! यह सुपीरियरटी  कॉम्प्लेक्स  भी ना ... जो ना करा दे...  मोनिका समझ गयी कि मैं अब अनिज़ी फील कर रहा हूँ...  मैं वही सोचा कि बहुत बुरे तरह से मोनिका ने धो दी... लेकिन शाम में मोनिका का फ़ोन आया... हंस रही थी... .......उसने बहुत अच्छे से काम-डाउन किया... मैं जब बैंक से बाहर आया था... तो यह इंसिडेंट सबसे पहले अजित गुप्ता ममा को फ़ोन कर के बताया... ममा भी बहुत हंस रही थीं... 

फिर वही मोनिका महफूज का गुणगान (?) करती फिरती है.


खुशदीप लिखता है किसी डाक्टरनी के बारे में जिसे महफूज ने पटा लिया है.
शुरुआत करता हूं अपने महफूज़ मियां से...जनाब ने लखनऊ के संजय गांधी पीजी मेडिकल कालेज के अस्पताल में भी अपना जलवा बिखेर रखा है...डॉक्टर्स को भी अपना मुरीद बना रखा है...एक युवा डॉक्टरनी साहिबा को तो खास तौर पर...खैर ये कहानी तो महफूज़ अपने आप ही सुनाएगा...आज मैं बात करूंगा महफूज़ के अंदर छिपे रजनीकांत की...अगर न्यूटन जिंदा होते और जिस तरह रजनीकांत को फिजीक्स के सारे रूल्स तोड़ते देख खुदकुशी कर लेते, कुछ ऐसा ही आलम महफूज़ मियां का है...

अगर यह सब हीरो होने की निशानियाँ हैं तो फिर सड़क छाप मजनू किसको कहते हैं ? आप स्वंय समझदार हैं.